martedì 16 ottobre 2018

煤炭产业榨干水资源

煤炭燃烧不仅仅会加剧气候变化导致全球变暖。在世界的某些区域,水这一最为珍贵的自然资源的供应正在快速减少,而作为化石燃料,煤炭燃烧会消耗大量的水资源。

绿色和平组织发布的这一报告发现,煤炭开采、加工、洗选以及燃烧消耗的水资源量足以满足12亿人口的基本用水需求。
煤炭生命周期各主要阶段的用水情况。来源:绿色和平组织

“在不久的将来,煤炭产业对缺水地区的影响将会给全球水安全造成最为严重的威胁,”这篇发表于3月22日“世界水日”的报告表示。


报告称,截止2013年末,全球8359座已经投入运营的燃煤电厂和2668座计划投建的燃煤电厂中,均有1/4位于水资源过度使用的地区。

人类在这些地区开采水资源的速度超越了其再生的速度,“严重威胁到了当地的生态环境,”报告补充道。

这篇报告名为“水资源攫取:煤炭产业如何加剧全球水资源危机”,其中包括荷兰工程公司 + 的计算,并借鉴了普氏能源资讯世界电厂数据库的数据、以及世界资源研究所的水道项目。绿色和平组织表示,水道项目是目前为止对这一主题最为全面的分析。

报告还特别关注到了那些因为气候变化、人口增长、集约农业以及工业污染等问题已经面临着高度用水压力的地区。

下列地图记录了全球各地用水压力基线,同时标注了现存燃煤电厂的分布情况。
阴影区域表示不同的用水压力基线水平,棕色部分为“水资源过度使用”区。黑白两色的圆点分别代表了截止2013年末,全球正在运营的和计划投建的燃煤电厂。来源:绿色和平组织

棕色地区的黑色圆点,即“水资源过度使用”区域存在的燃煤电厂,被称为是问题最为严重的“红色名单”区。

绿色和平组织对全球煤炭-水资源冲突的分析显示,红色名单区现存燃煤电厂耗水量最大的5个国家按耗水量排序依次为中国、印度、美国、哈萨克斯坦以及加拿大;红色名单区计划投的燃煤电厂耗水量最大的5个国家依次为中国、印度、土耳其、美国以及哈萨克斯坦。

若关闭红色名单区的燃煤电厂,节水收获最多的5个国家。(按耗水量排序)来源:绿色和平组织

若红色名单区拟建电厂不予建设,节水收获最多的5个国家。(按耗水量排序)来源:绿色和平组织

绿色和平组织的这篇报告特别关注了煤炭发电和清洁水需求之间优先级冲突十分严重的中国。

全球发电量约40%有赖于煤炭发电,而巴基斯坦、印度尼西亚、越南以及泰国等增长快速的国家预计也将会向中国、日本以及印度这三个亚洲最大的经济体看齐,成为煤炭燃烧大户。

虽然各国同意将1.5-2摄氏度的温升控制目标纳入去年12月签署的巴黎气候协议,但只有提高国家减排目标,对能源融资进行重大调整,才有可能实现发电能源结构脱炭这一决定性的转变。

中国黄河流域

报告强调了中国黄河流域水资源短缺的问题。黄河流域也有着大量的煤炭储备。其中,黄河主要支流窟野河流域的煤炭-水资源冲突最为突出。

煤炭开采导致该河自然流量大幅下降,不仅破坏了该流域日趋脆弱的生态环境,还使水土流失问题更加严峻。汛期以外的时间里,河水污染严重,无法用于农业灌溉。然而,面对不断恶化的环境危机,该地区的煤炭产业仍在不断扩张。

报告估计,到2020年,单窟野河流域煤炭产业的用水需求量就将超出整个流域预计的年度总水量,加剧其与农业及工业之间的竞争。

绿色和平组织表示,窟野河流域的案例说明中国面临着一个更为广泛的问题。在中国,红色名单区域燃煤电厂消耗的水资源量可以满足1.86亿人口的基本用水需求,而水危机区域计划投建的电厂所需水量则足够支持1亿人口的用水量。

建议

绿色和平组织表示,为了减少煤炭产业的用水需求,用水管理应纳入整个区域的规划,煤炭产业项目用水需求一旦超出可供应的水量,必须予以限制。

报告认为,面临用水压力的区域应优先考虑逐步淘汰煤炭使用这一环保团体长期以来推崇的目标,政策制定者也应选择发展耗水量少于煤炭的可再生能源。

lunedì 8 ottobre 2018

नज़रिया: क्यों मज़ाक बन गए हैं कश्मीर के स्थानीय चुनाव?

जम्मू कश्मीर में शहरी निकाय के चुनाव आज से शुरू हो रहे हैं. यहां कांग्रेस और भाजपा में सीधा मुक़ाबला देखने को मिलेगा क्योंकि नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी ने चुनाव बहिष्कार का एलान किया है.
सुरक्षा के मद्देनज़र जगह-जगह सुरक्षा बलों के नाक़े लगाए गए हैं.
नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी ने संविधान के अनुच्छेद 35ए को सुप्रीम कोर्ट में क़ानूनी चुनौती के दिए जाने के मुद्दे पर इन चुनावों का बहिष्कार किया है.
अनुच्छेद 35ए जम्मू-कश्मीर के नागरिकों को विशेष अधिकार और सुविधाएं देता है और दूसरे प्रदेश के लोगों को वहां अचल संपत्ति ख़रीदने से वंचित करता है.
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, चार चरणों में होने वाले चुनाव के लिए 3372 उम्मीदवारों ने पर्चा भरा है. इसमें से 192 उम्मीदवार निर्विरोध निर्वाचित हो चुके हैं.
लेकिन भारत के लिहाज़ से चुनावों के इस बहिष्कार के क्या मायने हैं? जम्मू-कश्मीर के हालात के संदर्भ में इन चुनावों को किस तरह देखा जाए? बीबीसी संवाददाता वात्सल्य राय ने इन्हीं सवालों के साथ श्रीनगर में पायनियर अख़बार के पत्रकार ख़ुर्शीद वानी से बात की.
जम्मू कश्मीर की पृष्ठभूमि के लिहाज़ से देखें तो यहां कई सालों तक नगर निकाय और पंचायत चुनाव नहीं हुए. एक ज़माना था कि तीस सालों तक ये चुनाव नहीं हुए थे. अभी 2011 से ये चुनाव नहीं हुए हैं.
इसलिए उतना ज़्यादा असर यहां नहीं रहा. जब स्थानीय निकाय चुनाव होते हैं तो उनके प्रतिनिधि बाद में विधान परिषद में आ जाते हैं. ज़मीनी स्तर पर विकास के लिहाज़ ये चुनाव काफ़ी अहम हो सकते थे.
लेकिन ये चुनाव भी यहां के राजनीतिक हालात के शिकार हो गए. इस वजह से इस चुनाव की स्वीकृति सवालों के घेरे में आ गई.
दो-तीन बरस से ये बात उठ रही है कि जम्मू-कश्मीर में नगर निकाय और पंचायत चुनाव होने चाहिए. लेकिन कश्मीर के ज़मीनी हालात इसकी इजाज़त नहीं देते.
2016 से हम देख रहे हैं कि बुरहान वानी के एनकाउंटर के बाद से आम लोग केंद्र सरकार के ख़ासे विरोध में हैं. ज़मीनी स्थिति ऐसी बनी कि भारत के लिए कश्मीर में कोई राजनीतिक दख़ल करना लगभग नामुमकिन हो गया.
हमने देखा कि पिछले साल अप्रैल में हुए उपचुनावों में बहुत हिंसा हुई. आठ लोगों की मौत हो गई और मतदान का प्रतिशत सिर्फ 7.14 फीसदी रहा. इसके बाद अनंतनाग का उपचुनाव रद्द करना पड़ा. इससे ये हुआ कि अलगाववादियों की चुनाव विरोधी आवाज़ों को आम लोगों का बहुत साथ मिला.
फिर अनुच्छेद 35ए को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दिए जाने को लेकर विवाद पैदा हुआ और इस विवाद की आड़ नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी ने ली.
इसकी वजह ये है कि ये दोनों पार्टियां अब लोगों के पास वोट मांगने नहीं जा सकतीं. लोग वोट देने के मूड में नहीं हैं. उन पर चरमपंथियों का भी दबाव है. दूसरी तरफ़ अलगाववादियों ने भी चुनावों का पूर्ण बहिष्कार किया है.
लेकिन भारत सरकार के लिए यह एक बहुत बड़ी चुनौती है. भारत प्रशासित कश्मीर में चरमपंथ के पांव पसारने के बाद से जब भी भारत सरकार ने हालात सुधारने की कोशिश की, उन्होंने चुनावों का ही सहारा लिया. 1996, 1998, 1999 और 2002 और 2008 के उदाहरण हमारे सामने हैं.
बिफ़रे हुए लोगों को मुख्यधारा में लाने की कोशिश हर बार सरकार ने चुनाव के ज़रिये ही की. इस बार भी ये वही चाहते हैं कि चुनाव का कार्ड इस्तेमाल करके भारत सरकार के ख़िलाफ़ जो गुस्सा पनपा है, उसे कमज़ोर किया जाए.
जहां तक लोगों के मूड और माहौल की बात है, कश्मीर में कहीं भी चुनाव का माहौल नहीं दिखता. नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी चुनाव में हिस्सा नहीं ले रहीं और उनके कार्यकर्ता भी नहीं दिखते. कहीं चुनावी सरगर्मी नहीं है. दीवारों पर पोस्टर और चुनावी रैलियां कहीं दिखाई नहीं दे रहीं.
ये चुनाव इस हद तक अजीबोग़रीब हैं कि मालूम ही नहीं है कि कहां कौन उम्मीदवार है. कुछ जगहों पर उनकी पहचान तक सार्वजनिक नहीं की जा रही है. यह एक मज़ाक सा बन गया है.
गुजरात में हिन्दी प्रदेशों से आए प्रवासी मजदूरों में डर का माहौल अब भी बना हुआ है. रेप के एक मामले में यूपी-बिहार से आए मजदूरों और पेशेवरों को स्थानीय लोगों के ग़ुस्से का सामना करना पड़ रहा है. पिछले महीने गुजरात के हिम्मतनगर ज़िले में 14 साल की एक लड़की के साथ रेप हुआ था.
इस रेप में सेरेमिक फ़ैक्ट्री में काम करने वाले बिहार के रघुवीर साहु को गिरफ़्तार किया गया था. इस रेप के कारण गुजरात के मेहसाणा, साबरकांठा और अरावली ज़िले में 28 सितंबर से यूपी-बिहार के लोगों पर हमले हो रहे हैं.
पुलिस का कहना है कि अहमदाबाद के दो इलाक़ों में उत्तर प्रदेश के दो लोगों पर रविवार को हमले हुए हैं. गुजरात से प्रवासी मज़दूर त्योहार के ठीक पहले अपने घर लौट रहे हैं, लेकिन कुछ लोगों का आरोप है कि इन्हें आठ अक्टूबर तक वापस जाने के लिए कहा गया है.
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने रविवार को स्वयं सेवी समूहों की प्रशंसा करते हुए कहा कि ये कर्ज़ भुगतान को लेकर पूरी तरह से प्रतिबद्ध हैं तो दूसरी तरफ़ बैंकों से बेशुमार क़र्ज़ लेने वाले लोग देश छोड़कर भाग रहे हैं.
मुख्यमंत्री ने कहा कि गांव की ग़रीब महिलाओं की मदद के लिए आठ लाख से ज़्यादा स्वयं सेवी समूहों का गठन किया गया है. इनकी मदद के ज़रिए गांव की महिलाएं छोटे-मोटे व्यापार कर रही हैं. नीतीश कुमार ने कहा कि यह बड़ी बात है. उन्होंने कहा कि यह गांव की ग़रीब महिलाओं में जागरूकता को ही दर्शाता है.
नीतीश कुमार अपनी पार्टी जेडीयू के बैनर तले आयोजित समाज सुधार वाहिनी कार्यक्रम में बोल रहे थे. नीतीश ने कहा कि महिलाओं का सशक्तीकरण समाज और देश का सशक्तीकरण है.
क्रिकेटर युवराज सिंह की मां शबनम सिंह एक पोंज़ी स्कीम में 50 लाख रुपए गंवा बैठी हैं. शबनम सिंह ने इसमें एक करोड़ रुपए का 84 फ़ीसदी रिर्टन के वादे पर निवेश किया था, लेकिन उन्हें निवेश की आधी रक़म 50 लाख ही मिली. ईडी के सहायक निदेशक ने शबनम सिंह से संदिग्ध फ़र्म में लेन-देन की पूरी जानकारी मांगी है.
शबनम सिंह समेत कई निवेशकों को लग रहा है कि वो एक पोंज़ी स्कीम में फ़र्ज़ीवाड़े के शिकार हो गए हैं. अब इसकी जांच ईडी की मुंबई टीम कर रही है. ईडी ने अपने शुरुआती बयान में कहा है कि यह 700 करोड़ रुपए का फ़र्ज़ीवाड़ा है.